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सिंध में रहने वाले दोस्त के नाम एक ख़त | शाही शायरी
sindh mein rahne wale dost ke nam ek KHat

नज़्म

सिंध में रहने वाले दोस्त के नाम एक ख़त

नीलमा सरवर

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तुम्हारा शहर कैसा है
वो सूरज जो तुम्हारे पास आ कर जगमगाता है

वो कैसा है
वो चंदा जो तुम्हारी सेज पर तारे सजाता है

वो कैसा है
वो रस्ता जो तुम्हारे घर को जाता है

वो कैसा है
तुम्हारा शहर कैसा है

वो किरनें जो तेरा आँगन सजाती हैं
वो कैसी हैं

हवाएँ जो तुझे छू कर सताती हैं
वो कैसी हैं

वो रातें जो तुझे लोरी सुनाती हैं
वो कैसी हैं

तुम्हारा शहर कैसा है
तुम्हारे शहर की जितनी फ़ज़ाएँ जितने रस्ते हैं

वो कैसे हैं
तुम्हारे शहर में जितने सजीले लोग बस्ते हैं

वो कैसे हैं
तुम्हारे शहर के सब फूल और तारे जो हँसते हैं

वो कैसे हैं
तुम्हारा शहर कैसा है

सुना है फूल भी इस शहर में मुरझाए रहते हैं
सितारे सहमे रहते हैं चमन कुम्हलाए रहते हैं

सुना है अब तो चंदा की भी लौ थर्राई रहती है
सुना है अब तो सूरज के लहू से बास आती है

सभी चेहरों को नफ़रत और डर ने यूँ सजाया है
कि सारे शहर पर जैसे कोई आसेब छाया है