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सिक्का पानी और सितारा | शाही शायरी
sikka pani aur sitara

नज़्म

सिक्का पानी और सितारा

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

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मूँद कर आँखें
बड़े ही ध्यान से

मैं ने पीछे की तरफ़
हौज़ के पानी में सिक्के फेंकते ही

इक ज़रा सी छेड़ की
अपने दिल-ए-ख़ुश-फ़हम से

ऐ बावले
अब तो हो जाएगी पूरी

ख़ैर से तेरी मुराद
सह-पहर की धूप में

हौज़ के झरने में सिक्के
सात रंगों में चमकते

यूँ दिखाई दे रहे थे
जैसे हम आवाज़ हो कर

सब उड़ाते हों मिरे दिल का मज़ाक़
जैसे आपस में ही

कर रक्खा हो बरपा
मेरी नम-ख़ुर्दा

हथेली के सितारों ने फ़साद