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शहीद-ए-वतन | शाही शायरी
shahid-e-watan

नज़्म

शहीद-ए-वतन

जोश मलसियानी

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देखिए इन जीने वालों का निशान-ए-ज़िंदगी
देखिए इन मरने वालों का जहान-ए-ज़िंदगी

देखिए इन पस्तियों में आसमान-ए-ज़िंदगी
देखिए इन ख़ाक के ज़र्रों की शान-ए-ज़िंदगी

बैठिए दम-भर शहीदान-ए-वतन की ख़ाक पर
देखिए रूह-ए-वफ़ा क्या क्या उभरती है यहाँ

देखिए हुब्ब-ए-वतन दिल में उतरती है यहाँ
देखिए दिल की फ़ज़ा कैसी निखरती है यहाँ

देखिए रहमत ख़ुदा की तौफ़ करती है यहाँ
बैठिए दम-भर शहीदान-ए-वतन की ख़ाक पर

इस जगह बे-रंगियाँ भी आलम-ए-तस्वीर हैं
इस जगह तारीकियाँ भी शम्अ' की तनवीर हैं

इस जगह ख़ामोशियाँ भी इक लब-ए-तक़रीर हैं
इस जगह रूपोशियाँ भी दिल की दामन-गीर हैं

बैठिए दम-भर शहीदान-ए-वतन की ख़ाक पर
उठ गए दुनिया से लेकिन एक दुनिया हो गए

बुलबुले पानी के थे टूटे तो दरिया हो गए
ये वो थे ज़र्रात जो उड़ कर सुरय्या हो गए

ये वो थे बीमार जो मर कर मसीहा हो गए
बैठे दम-भर शहीदान-ए-वतन की ख़ाक पर

दिल के उजड़े बाग़ को आबाद होते देखिए
रूह की अफ़्सुर्दगी को शाद होते देखिए

बंदगी को क़ैद से आज़ाद होते देखिए
पर-शिकस्ता सैद को सय्याद होते देखिए

बैठिए दम-भर शहीदान-ए-वतन की ख़ाक पर
आइए उस ख़ाक से कस्ब-ए-फ़ज़ीलत कीजिए

आइए क़ुर्बान उस पर दिल की दौलत कीजिए
हाँ ज़रा रुक जाइए इतनी न उजलत कीजिए

इस ज़ियारत-गाह-ए-आलम की ज़ियारत कीजिए
बैठिए दम-भर शहीदान-ए-वतन की ख़ाक पर