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शफ़्फ़ाफियाँ | शाही शायरी
shaffafiyan

नज़्म

शफ़्फ़ाफियाँ

वहीद अहमद

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हमें तुम मुस्कुराहट दो
तुम्हें हम खिलखिलाते रोज़ ओ शब देंगे

ये कैसे हो
कि तुम बौछाड़ दो

तो हम तुम्हें जल-थल न दे दें
और सहराओं को फ़र्श-ए-आब न कर दें

हमारा ध्यान रखो तुम
तुम्हें दुनिया में रखेंगे हम अपनी आरज़ुओं की

ये कैसे हो
कि तुम सोचा करो

और हम तुम्हारी सोच को तज्सीम न कर दें
मुरव्वज चाहतों के

बे-लचक आईन में तरमीम न कर दें
तुम्हें ये भी बताते हैं

अगर कोई ख़लिश है या कोई इबहाम है दिल में
तो फिर आगे नहीं बढ़ना

कि हम शफ़्फ़ाफ़ हैं
शफ़्फ़ाफ़ियाँ ही चाहते हैं

बे-नज़र शीशों में अपने अक्स को मैला नहीं करते
तुम्हें ये भी बताते हैं

अगर तुम छब दिखा के छुप गए
तो हम तुम्हें ढूँडेंगे चाहे आप खो जाएँ

अगर तुम कहकशाँ मस्कन बनाओगे
तो हम भी रौशनी-ज़ादे हैं

सूरज के पुजारी हैं
हम ऐसे सब सितारे तोड़ देते हैं

जो हम से रौशनी की भीक भी लेते हैं
आँखों में भी चुभते हैं

अगर पाताल में छुपने की कोशिश की
तो फिर ऐ सीम-तन!

धरती हमारे वास्ते सोना उगलती है
भला चाँदी कहाँ इस में ठहरती है

हमारी राह में
शीशा-नुमा पानी की झीलें मत बिछाना तुम

ये कंकर फेंक कर ही फ़ैसला होगा
कि उस पहनाई में कश्ती उतरती है

या फिर हम पाँव धरते हैं
मगर ऐसा न करना तुम

कि हम ऐसा ही करते हैं