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सर-ए-वादी-ए-सीना | शाही शायरी
sar-e-wadi-e-sina

नज़्म

सर-ए-वादी-ए-सीना

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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फिर बर्क़ फ़रोज़ाँ है सर-ए-वादी-ए-सीना
फिर रंग पे है शोला-ए-रुख़्सार-ए-हक़ीक़त

पैग़ाम-ए-अजल दावत-ए-दीदार-ए-हक़ीक़त
ऐ दीदा-ए-बीना

अब वक़्त है दीदार का दम है कि नहीं है
अब क़ातिल-ए-जाँ चारा-गर-ए-कुल्फ़त-ए-ग़म है

गुलज़ार-ए-इरम परतव-ए-सहरा-ए-अदम है
पिंदार-ए-जुनूँ

हौसला-ए-राह-ए-अदम है कि नहीं है
फिर बर्क़ फ़रोज़ाँ है सर-ए-वादी-ए-सीना, ऐ दीदा-ए-बीना

फिर दिल को मुसफ़्फ़ा करो, इस लौह पे शायद
माबैन-ए-मन-ओ-तू नया पैमाँ कोई उतरे

अब रस्म-ए-सितम हिकमत-ए-ख़ासान-ए-ज़मीं है
ताईद-ए-सितम मस्लहत-ए-मुफ़्ती-ए-दीं है

अब सदियों के इक़रार-ए-इताअत को बदलने
लाज़िम है कि इंकार का फ़रमाँ कोई उतरे