वो एक शाम क़लम खो गया था जब मेरा 
बहुत तलाश किया हर तरफ़ इधर कि उधर 
मगर क़लम का कहीं पर निशाँ न हाथ आया 
मिरी तलाश मिरी कश्मकश से घबरा कर 
मिरी वो छोटी सी बेटी मिरे क़रीब आई 
कि जिस ने लिखना अभी बस अभी ही सीखा है 
मिरे हवाले किया अपनी एक पेंसिल और 
कहा कि आप इसे अपने वास्ते रखिए 
मगर अजीब सा जादू है उस की पेंसिल में 
सिवाए सच के जो कुछ और लिख नहीं पाती 
वो एक शाम बहुत चाहा कुछ लिखूँ लेकिन 
वो एक शाम अजब थी मैं कुछ न लिख पाया
 
        नज़्म
सदाक़त
मुज़फ़्फ़र अबदाली

