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'साहिर-लुधियानवी के लिए | शाही शायरी
sahir-ludhiyanwi ke liye

नज़्म

'साहिर-लुधियानवी के लिए

नूर प्रकार

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सहर था जिस की बातों में
नख़्ल-ए-समर था

जिस के हाथों में
जादू-बयाँ ऐसा

जो बाँझ ज़मीनों से फ़सलें उगा गया
वजूद की बे-मा'नी किताबों में

हमें दर्स-ए-इबरत दे गया
मौत और ज़ीस्त के दरमियाँ

कितने फ़ासले मसदूद कर गया
तजरबात का बस अपने प्यालों में घोल कर

शाख़ों में आँसू खिला गया
ले आया वो सौग़ात

जो ज़ख़्म-ए-दिल का मुदावा भी बनी
क़ुदरत ने उस को बख़्शी

दयार-ए-शौक़ की रहबरी
हर लम्हा जिस ने की अपनी ज़ात की निगहबानी

तरक़्क़ी-पसंदों में 'साहिर'
एक निराला शाइ'र था