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रिश्तों की पहचान | शाही शायरी
rishton ki pahchan

नज़्म

रिश्तों की पहचान

कुमार पाशी

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हमें सब पता है
कि हम धरतियों के निराले फ़ुसूँ से

अज़ल से शनासा हैं
और नील-गूँ आसमानों का नश्शा भी

हम ने चखा है
उन्हें ग़म यही है कि उन के सरों पर

कोई आसमाँ है न पाँव के नीचे ज़मीं है
फ़क़त इक ख़रीदा हुआ कर्ब-ए-क़िस्मत है उन की

हमें सब पता है
उन्हें लौटना है पशेमान हो कर

सफ़र के दुखों से परेशान हो कर
कि धरती का और आसमानों का रिश्ता

अज़ल से पुराना है
और एक ही सूत में हम पिरोए हुए हैं