EN اردو
रौशनी के बोझ | शाही शायरी
raushni ke bojh

नज़्म

रौशनी के बोझ

अबरारूल हसन

;

हवा उड़ाए रेशम बादल के पर्दे
छन छन कर पेड़ों से उतरें रौशनियाँ

जैसे अचानक बच्चों को आ जाए हँसी
जंगल तीरा-बख़्त नहीं

छन छन कर छितनार से बरसो रौशनियो
पौदों की रग रग में तैरो रौशनियो

जंगल के सीने के कोनों-खुदरों में
दबे हुए असरार बहुत

ख़्वाब-गज़ीदा नशे में सरशार बहुत
नींद नगर को तजने पुर इसरार बहुत

कोंपल कोंपल फूटने पे तय्यार बहुत
बूढे पेड़ न रस्ता रोको

उन ख़्वाबों को जी लेने दो
छन छन कर छितनार से बरसो रौशनियो

इस मा'सूम हँसी में गरचे रब्त नहीं
पल-भर में आँसू बिन जाएँ ज़ब्त नहीं

इस मोती के क़ल्ब में उतरो रौशनियो
और चमक उस की चमकाओ रौशनियो

नगर नगर में तुम सा नाज़ुक लम्स न पाऊँ
किरन किरन के लेकिन बरसों बोझ उठाऊँ