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रात जुदाई की रात | शाही शायरी
raat judai ki raat

नज़्म

रात जुदाई की रात

शहरयार

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कटती नहीं सर्द रात
ढलती नहीं ज़र्द रात

रात जुदाई की रात
ख़ाली गिलासों की सम्त

तकती हुई आँख में
क़तरा-ए-शबनम नहीं

कौन लहू में बहे
मेरी रगों में चले

तेज़ हो साँसों का शोर
जलने लगे पोर पोर

आए समुंदर में जोश
गिर पड़े दीवार-ए-होश

सूखी हुई शाख़ पर
बर्ग ओ समर खिल उठीं

आओ मिरी नींद की
बिखरी हुई पत्तियाँ

आज समेटो ज़रा
कब से खुला है बदन

इस को लपेटो ज़रा
एक शिकन दो शिकन

बिस्तर-ए-तन्हाई पर
फिर से बढ़ा दो ज़रा

मुझ को रुला दो ज़रा
एक पहर रात है

रात जुदाई की रात