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राह-रौ | शाही शायरी
rah-rau

नज़्म

राह-रौ

मोहम्मद दीन तासीर

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आज मैं दूर बहुत दूर निकल आया हूँ
बे-तलब तग-ओ-दौ

दिल में काविश न तलाश
न कोई ख़्वाहिश मख़्फ़ी न तमन्ना-ए-मआ'श

हवस-ए-ख़ाम न सौदा-ए-तमाम
यूँही चलता हुआ चलता हुआ आ पहुँचा हूँ

पै-ब-पै गाम-ब-गाम
किस क़दर दूर निकल आया हूँ

उस से पहले भी चला हूँ मैं नई राहों पर
शाह-राहों से परे

ख़ार-ज़ारों में घिसटती हुई इक सुर्ख़ लकीर
इक सिसकती हुई दिल-दोज़ नफ़ीर

सरसराते हुए मल्बूस
महकती हुई साँस

लज़्ज़त-ओ-कर्ब का मद्धम बम-ओ-ज़ेर
आज लेकिन मैं बहुत दूर निकल आया हूँ

और इक शाम सर-ए-राहगुज़ार
वो मिरी लग़्ज़िश-ए-पा मेरी वो बे-राह-रवी

ख़ुद-फ़रामोश सुबुक-दोश-ए-अमल
अपने अज्दाद के ना-कर्दा गुनाहों की उक़ूबत से बरी

इक हिरन चौकड़ी भरता हुआ ख़ामोश-ख़िराम
शाम के वक़्त सर-ए-राहगुज़ार

मैं बहुत दूर भटक निकला था
आज लेकिन मैं बहुत दूर निकल आया हूँ

आप से आप बहुत दूर बहुत दूर निकल आया हूँ
शाह-राहों से परे दूर गुज़रगाहों से

बे-तलब बे-तग-ओ-दौ
ख़ानक़ाहों से अलग दौर सनम-ख़ानों से

हवस-ए-ख़ाम न सौदा-ए-तमाम
यूँही चलता हुआ चलता हुआ आ पहुँचा हूँ

पै-ब-पै गाम-ब-गाम
किस क़दर दूर बहुत दूर निकल आया हूँ