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क़ैद से नजात | शाही शायरी
qaid se najat

नज़्म

क़ैद से नजात

मुनीर शिकोहाबादी

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बारे आई नजात की बारी
खुल गया उक़्दा-ए-गिरफ़्तारी

हम को मंसब मिला रिहाई का
क़ैद को जाएदाद-ए-बेकारी

पाँव को छोड़ भागे मार-ए-दो-सर
सर को पुश्तारा-ए-गिराँबारी

कूच ठहरा मक़ाम-ए-ग़ुर्बत से
अब वतन चलने की है तय्यारी

रुख़्सत ऐ दोस्तान-ए-ज़िंदानी
अलविदा ऐ ग़म-ए-गिरफ़्तारी

अर्रहील ऐ मशक़्क़त-ए-हर-ज़ोर
अल-फ़िराक़ ऐ हुजूम-ए-नाचारी

दाल फ़े ऐन ऐ किताबत-ए-क़ैद
गाफ़ मीम ऐ हिसाब-ए-सरकारी

दाल चावल से कह दो रुख़्सत हों
पानी में डूबे ये नमक खारी

मछलियों से कहो कि हट के सड़ें
घास खोदे यहाँ की तरकारी

चीनी बरहमा मलाई मदरासी
अहल-ए-आशाम जंगली तातारी

अपने दीदार से माफ़ करें
अपनी बातों से दें सुबुक-सारी

काले पानी से होते हैं रुख़्सत
अश्क-ए-शादी हैं आँखों से जारी

बैठते हैं जहाज़ दूरी पर
उठते हैं लंगर-ए-गिराँबारी

करम ऐ ख़िज़्र अल-मदद ऐ नूह
रहम ऐ फ़ज़्ल-ए-हज़रत-ए-बारी

अस्सलाम ऐ ख़रोश-ए-बहर-ए-मुहीत
अस्सफ़र ऐ सफ़ीना-ए-जारी

ज़ाद-ए-राह-ए-सफ़र तवक्कुल है
रहनुमाई को उस की गफ़्फ़ारी

है इरादा कि फ़िक्र-ए-शेर करें
ताकि हो दूर रंज-ए-बेकारी

बस-कि बरसों रहा हूँ ज़िंदाँ में
भूली क़स्र-ए-सुख़न की मेमारी