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प्यार के तोहफ़े | शाही शायरी
pyar ke tohfe

नज़्म

प्यार के तोहफ़े

अबरारूल हसन

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न जाने क्या मिला क्या हसरतें बाक़ी रहीं दिल में
अभी दुनिया से क्या कुछ और लेना है

मुझे तो ये ख़बर है
ये दहकती आग

सब कुछ ख़ाक कर देगी
फ़क़त मेरा निशाँ

उठता धुआँ
चारों-तरफ़ रिश्तों पे मैली राख छिड़काता

ये तेज़ाबी
रग-ओ-पै में पनपता ज़हर

मग़रूराना बे-ज़ारी
निगह-दारी की दीवारें खड़ी करती

ये सब उस आग में क्यूँ जल नहीं जाते
अभी दुनिया से क्या कुछ माँगना है

क्या झपटना है
मैं साइल हूँ लुटेरा हूँ

हुई है मस्ख़ यूँ सूरत की पहचानी नहीं जाती
मैं कब तक झोंकता जाऊँगा ये तनूर

लहकी आग से कब नूर फूटेगा
कोई नन्ही किरन धीमी सी लौ

मुझ से कहें तो चाँदनी फैले
मैं कब दुनिया को लौटाउँगा उस के प्यार के तोहफ़े