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पहले फ़न दस्त-ओ-गरेबाँ हैं कराँ-ता-ब-कराँ | शाही शायरी
pahle fan dast-o-gareban hain karan-ta-ba-karan

नज़्म

पहले फ़न दस्त-ओ-गरेबाँ हैं कराँ-ता-ब-कराँ

नुसरत मेहदी

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पहले फ़न दस्त-ओ-गरेबाँ हैं कराँ-ता-ब-कराँ
सर-निगूँ बैठी हुई है ख़ाक पर उर्दू ज़बाँ

कश्ती-ए-उर्दू-ज़बाँ के ना-ख़ुदाओ क्या हुआ
इल्म-ओ-फ़न शेर-ओ-सुख़न के रहनुमाओ क्या हुआ

क्या हुई वो अज़्मतें कुछ तो बताओ क्या हुआ
पीछे हटती जा रही क्यूँ सफ़-ए-चारागराँ

सर-निगूँ बैठी हुई है ख़ाक पर उर्दू ज़बाँ
देखिए जिस को भी अब तो हम-सर-ए-ग़ालिब है वो

शाइर-ए-आज़म है और एज़ाज़ का तालिब है वो
है ग़लत-गो फिर भी हर इक सिंफ़ में साइब है वो

लिख रहा है ख़ुद ही अपनी अज़्मतों की दास्ताँ
सर-निगूँ बैठी हुई है ख़ाक पर उर्दू ज़बाँ

नंबरों से और गोशों से रसाएल भर गए
इस ज़वाल-ए-इल्म से ख़ुद इल्म वाले डर गए

नक़्ल ने बाज़ार लूटा अस्ल अपने घर गए
बे-अदब लोगों ने खोली है अदब की इक दुकाँ

सर-निगूँ बैठी हुई है ख़ाक पर उर्दू ज़बाँ