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पागल लड़की | शाही शायरी
pagal laDki

नज़्म

पागल लड़की

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

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अपनी मोहब्बत के हाँ करने
छुप के निकाह के दो बोलों पर ख़ुश होने और

उस ही ख़ुशी में अपने हाथों को मेहंदी से रंगने वाली
हर-पल शोख़ी से मुस्काती पागल लड़की

इस मेहंदी का रंग फीका पड़ने से पहले
तेरे सय्याँ

छोड़ के बैय्याँ
अपनी एक नई दुनिया में मगन हुए हैं

इक दो दिन में तुझ से जो कुछ लेना है वो सब कुछ ले कर
और तलाक़ की कालक तेरे मुँह पर मल कर

महर के नाम पर एहसाँ कर के
तुझ को ऐसा ज़ेर करेंगे कि सब शोख़ी

आँखों में मौजूद ये मस्ती
तेरी हस्ती

सब कुछ बस इक पल में उल्टा हो जाएगा
तेरी क़िस्मत के दुख जितने संजीदा हैं

पागल लड़की
तू भी यक-दम वैसी ही संजीदा होगी