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नज़्म | शाही शायरी
nazm

नज़्म

नज़्म

गुलज़ार

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बस्ता फेंक के लो जी भागा रौशन-आरा बाग़ की जानिब
चिल्लाता चल गुड्डी चल

पक्के जामुन टपकेंगे
आँगन की रस्सी से माँ ने कपड़े खोले

और तन्नूर पे ला के टीन की चादर डाली
सारे दिन के सुखाए पापड़

लच्छी ने चादर में लपेटे
बच गई रब्बा किया कराया धुल जाना था

ख़ैरू ने खेत की सूखी मिट्टी
झुर्रियों वाले हाथ में ले कर

भीगी भीगी आँखों से फिर ऊपर देखा
झूम के फिर उठ्ठे हैं बादल

टूट के फिर मेंह बरसेगा