एक अर्से से
जज़्बात-ओ-एहसास की वादी-ए-इश्क़ की बस्ती
नए पुराने सभी मकान तमन्नाओं के
खुली छतें अहद-ओ-पैमाँ की
बंद झरोके के आरज़ूओं के
नीम-शिकस्ता दीवार-ओ-दर अरमानों के
उम्मीदों के ऊँचे नीचे लम्बे चौड़े
गीले और पथरीले रस्ते
राहत के अश्जार सुकूँ की दूब तरब की ख़ुद-रौ बेलें
रंग-बिरंगी सोच के फूलों की शतरंजी
महरूमी की ऊँची चोटी
तन्हाई की जान-लेवा ढलवान दुखों की सख़्त चट्टानें दर्द की खाई
सब पर यास की बर्फ़ जमी थी
चारों जानिब
ठंडी और बे-जान सफ़ेदी फैल रही थी
जीवन क्या था एक कफ़न था
जिस के अंदर
ख़ुद को अपने यख़-बस्ता सीने से लगाए
मैं इक ज़िंदा लाश की सूरत पड़ा हुआ था
दिल के वीराने में कुछ बे-चेहरा लम्हे
आसेबी सायों की सूरत
काँप रहे थे हाँप रहे थे
आज अचानक
एक परी-चेहरा
मेरे चेहरे से बे-रंग कफ़न सरका कर
मेरे कान में सरगोशी की
मेरी आँख में झाँक कर बोली
उठ और देख
तिरे दिल की बे-ख़बर धड़कन में
कितना प्यारा कितना दिल-आवेज़ सियाह गुलाब खिला है
नज़्म
नया इश्क़
ज़ुहूर नज़र