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नाकामी | शाही शायरी
nakaami

नज़्म

नाकामी

इफ़्तिख़ार आज़मी

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बंद आँखें किए सर-ए-साहिल
कल सहर-दम ये सोचता था मैं

नींद की गोद में ज़माना है, बेड़ियाँ तोड़ दूँ, निकल जाऊँ
वादी-ए-हू में जा के खो जाऊँ

दफ़अतन एक मौज ने बढ़ कर
अपना सर मेरे पाँव पर रक्खा

और कहा
देख चश्म-ए-दिल से देख

नील-गूँ बहर कितना दिलकश है
है ज़मीं किस क़दर हसीन-ओ-जमील

आसमाँ कितना ख़ूब-सूरत है
लेकिन ऐ शाहकार-ए-दस्त-ए-अज़ल जिस तरफ़ का तिरा इरादा है

क्या पता वो दयार कैसा है
ये फ़ज़ा ये हवा ये हुस्न तुझे

क्या ख़बर है, वहाँ मिले न मिले?
और यूँ बंद हो गईं मुझ पर हर तरफ़ से फ़रार की राहें!