ऐमन का नूर अगर है तो मेरे वतन में है 
अब तक भी शान-ए-तूर इसी उजड़े चमन में है 
दोनों हैं तेरी याद में आलूदा-ए-ग़रज़ 
जो ऐब शैख़ में है वही बरहमन में है 
लिपटा हुआ है दौर-ए-ख़िज़ाँ भी बहार से 
दोनों का रंग लाला-ए-ख़ूनीं-कफ़न में है 
क्यूँ दिल में ढूँडते हो शगुफ़्ता-मिज़ाजियाँ 
पहली सी अब बहार कहाँ इस चमन में है 
ज़र्रे चमक रहे हैं तिरी रहगुज़ार के 
है तेरा नक़्श-ए-पा कि चराग़ अंजुमन में है 
नाकाम हसरतों की यही तो है यादगार 
दाग़ों का जो हुजूम दिल-ए-पुर-मेहन में है 
ये भी ख़बर है गौहर-ए-मक़्सद नहीं यहाँ 
दिल तेरा फिर भी ग़र्क़ फ़ुरात-ओ-जमन में है 
अज़्म-ए-सफ़र बहार में ऐ 'अर्श' किस लिए 
दुनिया की हर बहार बहार-ए-वतन में है
        नज़्म
मेरा वतन
अर्श मलसियानी

