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मौत किस ने बाँटी है | शाही शायरी
maut kis ne banTi hai

नज़्म

मौत किस ने बाँटी है

मैमूना अब्बास ख़ान

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रात के अँधेरे में
आज फिर दबे पाँव

सरसराती सरगोशी
फन उठा के चलती है

वक़्त रेत की मानिंद
हाथ से फिसलता है

नींद मुझ से रूठी है
भूक रक़्स करती है

प्यास चुभने लगती है
साँस क्यूँ अटकती है

झाँको मेरी आँखों में
अक्स देख लो अपना

और मुझे ये बतला दो
क्या तुम्हें खटकता है

क्यूँ गुरेज़ाँ हो मुझ से
क्या में बोझ लगती हूँ

क्यूँ मचल सी जाती हो
हाथ भी बढ़ाती हो

फिर परे खिसकती हो
हाथ खोल दो मेरे

भींच लो ना सीने में
गाल छूने दो अपने

गर नहीं रही कल मैं
लम्स तो रहेगा ना

ये सदाएँ कैसी हैं
जिन की गूँज से मेरे

कान सनसनाते हैं
किस की सिसकियाँ हैं ये

ज़िंदगी की या तुम हो
मौत तो नहीं ना ये

मौत गर नहीं है ये
आहटें हैं फिर किस की

क्यूँ घुटन का पहरा है
क्या मुझे जनम दे कर

तुम ने मौत बाँटी है