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मौसम की विरासत | शाही शायरी
mausam ki wirasat

नज़्म

मौसम की विरासत

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

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खेत प्यासे हैं
फ़ज़ा हाँफती है

जा-ब-जा उखड़ी जड़ें चाटती इक गाए
के सूखे हुए मटियाले खुरों की मानिंद

फट गई है जो ज़मीं
उस में उगी झाड़ियाँ

बे-बर्ग-ओ-समर रहती हैं
मौसम हो कोई

किसी फ़ालिज-ज़दा बीमार के अकड़े हुए पंजे की तरह
टहनियाँ सोए फ़लक देखती फ़रियाद-कुनाँ हैं कब से

महज़ फ़रियाद से ऐ दोस्त मगर क्या होगा
जोड़ता रहता है मौसम की विरासत से दिलों को

जो किसी मेज़-नुमा शय ये कई दिन से पड़ा
चाए-ख़ाने का फटा सा अख़बार

इक नज़र आओ इसे देख तो लें
हाल ऐसा है कि अब जो भी हो अच्छा होगा