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मरने वाले के कमरे में | शाही शायरी
marne wale ke kamre mein

नज़्म

मरने वाले के कमरे में

महमूद अयाज़

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यूँ रग ओ पय में अजल उतरी है
हाथ साकित हैं दुआ क्या माँगें

आँख ख़ामोश है, क्या देखेगी
होंट ख़्वाबीदा हैं क्या बोलेंगे

एक सन्नाटा अबद-ताबा-अबद
जोहद-ए-यक-उम्र का हासिल ठहरे

दर्द का शोला रग-ए-जाँ का लहू
जिंस-ए-बे-माया थे बे-माया रहे

तीरा ख़ाक उन की ख़रीदार बने
निकहत-ए-गुल की तरह आवारा

बू-ए-जाँ वुसअत-ए-आफ़ाक़ में गुम
यक कफ़-ए-ख़ाक है वो भी कब तक?

सुब्ह की ओस से आँखें धो लो
कमरे से झाँक के बाहर देखो

ऐसे मसरूफ़ तग-ओ-ताज़ हैं सब
जैसे कल उन के मुक़द्दर में नहीं

मैं तमाशाई हूँ हर मंज़र का
जैसे कल मेरे मुक़द्दर में नहीं