तिरी चश्म-ए-मय गूँ का लबरेज़ साग़र
जवानी तिरी कैफ़-आवर जवानी
गुलिस्ताँ दर आग़ोश-ए-हुस्न-ए-तबस्सुम
वो तेरे लब-ए-सुर्ख़ की गुल-फ़िशानी
तकल्लुम के अंदाज़ ख़ामोशियों में
ज़बान-ए-नज़र पर हया की कहानी
तू ही मुझ से कह दे मैं क्यूँ भूल जाऊँ
वो साँसों की तेज़ी वो सीने की धड़कन
वो दोनों का छुप-छुप के आँसू बहाना
वो तज्दीद-ए-उल्फ़त के सौ-सौ बहाने
वो इक दूसरे से यूँ ही रूठ जाना
वो तर्क-ए-मोहब्बत के इल्ज़ाम दे कर
किसी का किसी को हँसी में रुलाना
तू ही मुझ से कह दे मैं क्यूँ भूल जाऊँ
वो पास-ए-अदब वो ख़ुलूस-ए-मोहब्बत
वफ़ूर-ए-तमन्ना में ख़ामोश रहना
वो नज़्ज़ारगी में तहय्युर का आलम
ख़ुद अपनी निगाहों से ख़ामोश रहना
रज़ा-जू-तबीअ'त वो तालीम-कोशी
ग़म-ओ-रंज में भी वफ़ा-कोश रहना
तू ही मुझ से कह दे मैं क्यूँ भूल जाऊँ
सवालों का तूमार मुबहम ज़बाँ में
मगर राज़-ए-दिल का न इज़हार करना
निगाहें मिलाने में तो इक झिझक सी
मगर दिल ही दिल में मुझे प्यार करना
वो अर्ज़-ए-मोहब्बत पे मासूम वअ'दे
वो लुक्नत ज़बाँ की वो इक़रार करना
तू ही मुझ से कह दे मैं क्यूँ भूल जाऊँ
तिरी चश्म-ए-पुर-नम वो मसऊद साअत
यक़ीं बन गया जब गुमान-ए-मोहब्बत
मोहब्बत के दिन और वो फ़ुर्क़त की रातें
दुआएँ थीं जब तर्जुमान-ए-मोहब्बत
वो ख़त जिन का हर लफ़्ज़ इक दास्ताँ था
वो जज़्बात से पुर-बयान-ए-मोहब्बत
तू ही मुझ से कह दे मैं क्यूँ भूल जाऊँ
वो छिटकी हुई चाँदनी की बहारें
वो गुल-पोश रातें वो दिलकश नज़ारे
मनाज़िर सिमटते हुए आबजू में
फ़लक पर चमकते हुए चाँद तारे
वो थक कर किसी का यूँ ही बैठ जाना
वो उठना किसी का किसी के सहारे
तू ही मुझ से कह दे मैं क्यूँ भूल जाऊँ
वो तूफ़ान-ए-जज़्बात-ओ-ज़ोर-ए-तमन्ना
वो जोश-ए-मोहब्बत वो पुर-शौक़ बातें
वो घड़ियाँ वो आराम-ओ-राहत की घड़ियाँ
वो फ़रहत के दिन वो मसर्रत की रातें
वो घातें वो घातों के पर्दे में वअ'दे
वो वअ'दे वो वादों के पर्दे में घातें
तू ही मुझ से कह दे मैं क्यूँ भूल जाऊँ
मआ'ल-ए-मसर्रत वो मजबूर आँसू
वो कैफ़-ए-तरब का ग़म-अंजाम होना
पुर-इल्ज़ाम बातें वो सब की ज़बाँ पर
मोहब्बत के क़िस्से का वो आम होना
वो बरगश्ता-ख़ातिर बुज़ुर्गों की बातें
वो मासूम रूहों का बदनाम होना
तू ही मुझ से कह दे मैं क्यूँ भूल जाऊँ
वो दिन तफ़रक़ा-ख़ेज़ मजबूरियों का
फ़रेब-ए-मुक़द्दर की वो चीरा-दस्ती
ख़ुमार-ए-मय ऐश और ना-मुरादी
वो मर्ग-ए-तमन्ना वो अंजाम-ए-मस्ती
रुसूम-ए-कुहन की सितम-आफ़रीनी
ज़माने का जौर-ए-क़दामत-परस्ती
तू ही मुझ से कह दे मैं क्यूँ भूल जाऊँ
नज़्म
मैं क्यूँ भूल जाऊँ
अर्श मलसियानी