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मैं गौतम नहीं हूँ | शाही शायरी
main gautam nahin hun

नज़्म

मैं गौतम नहीं हूँ

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

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मैं गौतम नहीं हूँ
मगर मैं भी जब घर से निकला था

ये सोचता था
कि मैं अपने ही आप को

ढूँडने जा रहा हूँ
किसी पेड़ की छाँव में

मैं भी बैठूँगा
इक दिन मुझे भी

कोई ज्ञान होगा
मगर जिस्म की आग

जो घर से ले कर चला था
सुलगती रही

घर से बाहर हवा तेज़ थी
और भी ये भड़कती रही

एक इक पेड़ जल कर हुआ राख
मैं ऐसे सहरा में अब फिर रहा हूँ

जहाँ मैं ही मैं हूँ
जहाँ मेरा साया है

साए का साया है
और दूर तक

बस ख़ला ही ख़ला है