शाम का बादल नए नए अंदाज़ दिखाया करता है
कभी वो नन्हा बच्चा बन कर मेरे सामने आता है
कभी वो अपना ख़ून बहा कर मेरे जी को डराता है
कभी किसी हँसमुख औरत की तरह मुझे बहलाता है
फिर आँखों से इशारा कर के कमरे में छुप जाता है
इसी तरह वो नए नए अंदाज़ दिखाया करता है
जब कोई उस को घूर के देखे नाज़ दिखाया करता है
नज़्म
मैं और बादल
मुनीर नियाज़ी