ख़याल शैतान की आँत की तरह उमूदी
दूरी के मैदान में खड़ा है
दोस्तों के हज का ज़माना
उन के गिर्द तवाफ़ करता रहता है
बहते पानी में हाथ डुबो कर
तुम्हें छू लेता हूँ
शीशम के पेड़ पे फ़ाख़्ता
बोलती रहती है
मेरे पास सिर्फ़ मेरा रास्ता है
जिस से मैं अंजान हूँ
धूप के खेल में
सायों से नहीं उलझना चाहिए
नज़्म
मैदान
हुसैन आबिद