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माज़रत | शाही शायरी
mazarat

नज़्म

माज़रत

रियाज़ लतीफ़

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मुझे मुआफ़ करना
हवाओं के पुर-सोज़ चेहरो

कि मैं ने तुम्हारे फ़लक-दर-फ़लक तेवरों का सराब भी पाया नहीं है
मुझे मुआफ़ करना सितारों के सायो

तुम्हारी सियाही के बोसीदा नुक़्तों में ढलने से अब तक मैं क़ासिर रहा हूँ
ग़याबों की नज़रों से तन्हा बहा हूँ

मुझे मुआफ़ करना मोहब्बत के हामिल सराबो
कि बाँहों में आ कर बसा हूँ तुम्हारी

समुंदर की उजड़ी सदाओं की सूरत
किसे ढूँडती है मिरी बे-ज़बानी

मुझे मुआफ़ करना अभी तक मैं ये जान पाया नहीं हूँ
मुझे मुआफ़ करना अबद के सलासिल में जकड़ी हुई सारी चीज़ो

कि मैं वक़्त की बूँद में प्यास की तरह बोया गया हूँ
ज़मानों की आँखों से रोया गया हूँ

मैं मंज़र किसी लम्हा मावरा का
मैं हम-अस्र हूँ तितलियों के परों का

हवा का
ख़ुदा