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कोई ज़िंदगी थी गुमान सी | शाही शायरी
koi zindagi thi guman si

नज़्म

कोई ज़िंदगी थी गुमान सी

नाहीद क़मर

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क्या कोई ख़बर आए
ज़िंदगी के तरकश में

जितने तीर बाक़ी थे
मेरी बे-ध्यानी से

दिल की ख़ुश-गुमानी से
साज़ बाज़ करते ही

रूह में उतर आए
धुँद इतनी गहरी है

कुछ पता नहीं चलता
ख़्वाब के तआ'क़ुब में

कौन से ज़मानों से
कितने आसमानों से

हम गुज़र के घर आए
फ़स्ल-ए-गुल की बातें भी

अब कहाँ रहें मुमकिन
उम्र की कहानी में

ऐसी बे-ज़मीनी में
ऐसी ला-मकानी में

सिर्फ़ इतना मुमकिन है
धड़कनों की गिनती में

अगला मोड़ मुड़ते ही
आख़िरी सफ़र आए