रात है कितनी गहरी काली
दुख की बात सुझाने वाली
दूर दूर की आवाज़ों को
उजड़े घरों में लाने वाली
सर पर है घनघोर बदरिया
दिल में लगन प्रीतम के मिलन की
शोर मचाती बढ़ती आए
तेज़ हवा सूने मधुबन की
चढ़ता सागर रस्ता रोके
बैरन बिजली जी को डराए
दूर बहुत है पी की नगरिया
हम से तो अब चला न जाए

नज़्म
कल्पना
मुनीर नियाज़ी