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जुदाई | शाही शायरी
judai

नज़्म

जुदाई

वर्षा गोरछिया

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तमाम ख़्वाबों की आँखें
अधूरे फ़साने के आख़िरी गीत को

तुम्हारी आँखों से सुनना चाहेंगी
दर्द फ़सुर्दा रातों के ज़र्द चेहरे

तुम्हारी परछाइयों में पनाह ढूँडेंगे
रौशन यादों के मुर्दा मुरझाए बदन

काँच की मोटी धुँदली दीवार में दफ़्न रहेंगे
उम्मीदों के जनाज़े रोज़ उठेंगे

चीख़ों के हल्क़ से ज़बानें खींच ली जाएँगी
आहों के क़द कटवा दिए जाएँगे

तुम्हें पुकारूँगी भी तो कैसे
मगर ता-उम्र ये नज़रें तुम्हें ढूँडेंगी