जबीन-ए-ज़ीस्त पे मर्क़ूम है मिरी आवाज़ 
कि तू ने ज़िंदा किए हुस्न-ओ-इश्क़ के ए'जाज़ 
बदल बदल के तिरी धड़कनों को नाम मिला 
कभी नवा-ए-हक़ीक़त नवा-ए-मजाज़ 
तिरी सदा-ए-मोहब्बत ने फ़ाश कर डाला 
वो राज़-ए-हश्र जो रखता है एक महशर-ए-राज़ 
निशान-ए-राह कहीं ज़िंदगी के नक़्श-ए-क़दम 
कहीं हयात के रौंदे हुए नशेब-ओ-फ़राज़ 
कभी तो अश्क में ख़ून-ए-जिगर का रंग-ए-हयात 
कभी तो आह में दिल की दबी हुई आवाज़ 
नज़र नज़र में बहार-ए-निगाह नग़मा-ए-बदोश 
नफ़स नफ़स में इक एहसास-ए-दर्द नग़्मा-तराज़ 
बहकती शाम में तारों का रक़्स रिंदाना 
रुपहली सुब्ह का कलियों से वो जमील अंदाज़ 
वो फूल फूल पे शबनम की ज़िंदगी मंज़ूम 
वो झरने झरने में खोए हुए से नग़्मा-ओ-साज़ 
बहकती शाम में तारों का रक़्स-ए-रिंदाना 
रुपहली-सुब्ह का कलियों से वो जमील अंदाज़ 
वो फूल फूल पे शबनम की ज़िंदगी मंज़ूम 
वो झरने झरने में खोए हुए से नग़्मा-ओ-साज़ 
वो रोज़-ए-अब्र में कैफ़-ओ-नशात की बारिश 
हसीन चाँदनी रातों का वो लतीफ़ गुदाज़ 
तिरी निगाह ने ऐसी नज़ाकतें पाईं 
कि हुस्न ख़ुद ही पुकारा कि मैं हूँ इश्क़ का राज़ 
अभी फ़ज़ाओं में रक़्साँ है बन के नग़्मा-ए-शौक़ 
ख़याल की वो बुलंदी-ए-नज़र की वो परवाज़ 
मता-ए-सोज़ है ख़ुर्शीद-ओ-माह में अब तक 
जो तू ने छेड़ा था फ़िक्र-ओ-निशात का इक साज़ 
तिरी लतीफ़ सदाओं की गूँज है अब तक 
अभी हैं ज़ोहरा-ओ-नाहीद गोश-बर-आवाज़
        नज़्म
सिराज औरंग-आबादी
मैकश अकबराबादी

