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जब तेज़ भूक लगी हो | शाही शायरी
jab tez bhuk lagi ho

नज़्म

जब तेज़ भूक लगी हो

सईदुद्दीन

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जब तेज़ भूक लगी हो
मैं अपने जिस्म से खेलना शुरूअ' कर देता हूँ

बहुत सादा सा खेल है ये
इस खेल में हमारा दिल

बड़ी आसानी से
एक फूली हुई चपाती में तब्दील हो जाता है

और हमारा जिस्म
नोकीले दाँतों की एक क़तार में

शायद आप कभी इस तजरबे से नहीं गुज़रे
शायद कभी आप की आँतें ऐँठ कर दोहरी नहीं हुईं

शायद कभी भूक से निढाल हो कर
आप के किसी दाँत की नोक

आप के अपने होंट में पैवस्त नहीं हुई
शायद आप की ज़बान ने

अपने ख़ून का ज़ाइक़ा नहीं चखा
ये बातें आप के लिए अजीब हैं

शायद ना-क़ाबिल-ए-यक़ीन भी
लेकिन बड़ी आसानी से हर बात समझ आ जाती है

जब आदमी भूका हो
इतना भूका

कि ये अंदाज़ा लगाने के क़ाबिल ही न रहे
कि वो

रोटी की फूली हुई चपाती है
या भूक