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जब हम पहली बार मिले थे | शाही शायरी
jab hum pahli bar mile the

नज़्म

जब हम पहली बार मिले थे

फ़ारूक़ बख़्शी

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जब हम पहली बार मिले थे
मौसम कितना उजला था

मैं था इक आज़ाद परिंदा
नील-गगन में उड़ने वाला

तुम भी इतने उम्र-रसीदा कब थे
बालों में ये चाँदी कब थी

लहजे में खनक आँखों में चमक थी
बात बात पर ज़ोर से हँसना

आदत में भी शामिल था
सब के दुख सुख का हिस्सा बन जाना

फ़ितरत में भी शामिल था
लेकिन अब ऐसा लगता है

तुम से बिछड़ने का पल
शायद आ पहुँचा है

तुम से बिछड़ कर कल मैं जब
इस मोड़ पे फिर वापस आऊँगा

सारे रस्ते सब दीवारें और दरवाज़े
मुझ से मेरे साथ के बारे में पूछेंगे

राम-नारायन और केदार भी
फिर ये राज़ न खोलेंगे

और मिरी आँखों में सारा मंज़र
धुँदला धुँदला हो जाएगा

लेकिन मैं बीते लम्हों से
फिर उस को उजला कर लूँगा

और फिर याद मुझे आएगा
जब हम पहली बार मिले थे

मौसम बिल्कुल ऐसा ही था