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इंसाफ़ का तराज़ू जो हाथ में उठाए | शाही शायरी
insaf ka taraazu jo hath mein uThae

नज़्म

इंसाफ़ का तराज़ू जो हाथ में उठाए

साहिर लुधियानवी

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इंसाफ़ का तराज़ू जो हाथ में उठाए
जुर्मों को ठीक तोले

ऐसा न हो कि कल का इतिहास-कार बोले
मुजरिम से भी ज़ियादा

मुंसिफ़ ने ज़ुल्म ढाया
कीं पेश उस के आगे ग़म की गवाहियाँ भी

रक्खीं नज़र के आगे दिल की तबाहियाँ भी
उस को यक़ीं न आया

इंसाफ़ कर न पाया
और अपने उस अमल से

बद-कार मुजरिमों के नापाक हौसलों को
कुछ और भी बढ़ाया

इंसाफ़ का तराज़ू जो हाथ में उठाते
ये बात याद रक्खे

सब मुंसिफ़ों से ऊपर