ज़ुल्म की रात बहुत जल्द टलेगी अब तो
आग चूल्हों में हर इक रोज़ जलेगी अब तो
भूक के मारे कोई बच्चा नहीं रोएगा
चैन की नींद हर एक शख़्स यहाँ सोएगा
आँधी नफ़रत की चलेगी न कहीं अब के बरस
प्यार की फ़स्ल उगाएगी ज़मीं अब के बरस
है यक़ीं अब न कोई शोर-शराबा होगा
ज़ुल्म होगा न कहीं ख़ून-ख़राबा होगा
ओस और धूप के सदमे न सहेगा कोई
अब मिरे देश में बेघर न रहेगा कोई
नए वादों का जो डाला है वो जाल अच्छा है
रहनुमाओं ने कहा है कि ये साल अच्छा है
दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है
नज़्म
इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
साबिर दत्त