फ़ज़ा में ईस्तादा रौशनी का एक मीनार
उसी के पास अँधियारे की दीवार
इधर वादी फ़ना की
हर तरफ़ जिस में धुआँ-धार
जिसे घेरे हैं कुछ रंगीन बादल
शोख़, गुलनार
उस तरफ़ ख़ुश्बू की बौछार
ज़रा हट कर समुंदर इल्म का
(झागों का अम्बार)
इधर उलझन
न जाने क्या है उस पार
नज़्म
इबलाग़ से परे
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी