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इबलाग़ से परे | शाही शायरी
iblagh se pare

नज़्म

इबलाग़ से परे

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

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फ़ज़ा में ईस्तादा रौशनी का एक मीनार
उसी के पास अँधियारे की दीवार

इधर वादी फ़ना की
हर तरफ़ जिस में धुआँ-धार

जिसे घेरे हैं कुछ रंगीन बादल
शोख़, गुलनार

उस तरफ़ ख़ुश्बू की बौछार
ज़रा हट कर समुंदर इल्म का

(झागों का अम्बार)
इधर उलझन

न जाने क्या है उस पार