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हवा के कान में कहना उसे बिखरा के आ जाए | शाही शायरी
hawa ke kan mein kahna use bikhra ke aa jae

नज़्म

हवा के कान में कहना उसे बिखरा के आ जाए

सलमान सिद्दीक़ी

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वो इक बे-जान बादल है
उसे उड़ना तो आता है

बरस कर अपनी सूरत हू-ब-हू रखना नहीं आता
सो जब इस ख़ूब-सूरत के

बदन के लम्स की ख़ातिर
बरसता है

भिगोता है उसे तस्कीन से लबरेज़ करता है
तो अपनी ही शबाहत का गुमाँ रखे

यक़ीन इज्ज़ कर के
इस के फ़ानी जिस्म से रिस कर

ज़मीं का रिज़्क़ बनता है
तो लगता है

किसी अन-होनी साअ'त ने
ज़मीं की ताल पर गिर के

बक़ा का गीत छेड़ा हो