एक दिन वक़्त का झुलसा हुआ मैला चेहरा
इक दिल-अफ़रोज़ जिला पाएगा
सरगुज़िश्त-ए-ग़म-ए-दौराँ का मुसन्निफ़ इक दिन
सारी ना-गुफ़्ता हिकायात को जाएगा
वो दिल-आराम से मौसम वो ख़ुनुक वादी-ए-रंग
जिन की ख़ुश्बू पे इजारा रहा
सफ़्फ़ाक सितम-रानों का
जिन के फूलों में फलों में था लहू
सैकड़ों जाँ-सोख़ता इंसानों का
अब वो तारीख़-ए-ज़ुबूँ
वक़्त न दोहराएगा
वो पसीना जो टपकता है थके और तपे जिस्मों से
मेरे एहसास के माथे पे नमी है जिस की
एक दिन रू-ए-ज़मीं का वही ग़ाज़ा बन कर
अपनी खोई हुई मेहनत का सिला पाएगा
और
शद्दाद-सिफ़त
ग़म का भयानक आसेब
मौत के घाट उतर जाएगा
नज़्म
हर्फ़-ए-यक़ीं
अकबर हैदराबादी