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हम तो जा चुके जानाँ | शाही शायरी
hum to ja chuke jaanan

नज़्म

हम तो जा चुके जानाँ

मुनव्वर जमील

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अब ये कैसी उलझन है
अब ये कैसा झगड़ा है

बात थी मोहब्बत की
और तुम मोहब्बत पर

एक ही मोहब्बत पर
कब यक़ीन रखते थे

तुम तो हर घड़ी अपनी
दिल-बराना आँखों में

इक नई रिफ़ाक़त का ख़्वाब ले के उठते थे
और अपनी शामों में

अपने ख़्वाब-ओ-ख़्वाहिश के
बे-लिबास जज़्बों को

शौक़ से सजाते थे
और ऐसे आलम में

जिस्म-ओ-जाँ के मौसम में
एक हम ही उलझन थे

हम तो जा चुके जानाँ
दिल पे बेवफ़ाई के

ज़ख़्म खा चुके जानाँ
अब ये कैसी उलझन है

अब ये कैसा झगड़ा है