EN اردو
हम-सफ़री | शाही शायरी
ham-safari

नज़्म

हम-सफ़री

अबरारूल हसन

;

दो सदियाँ कैसे बात करें
सखियाँ बन जाएँ

साथ चलें
आकाश से फैली धरती तक

शीशे की इक दीवार खिंची
क्या रम्ज़ है कैसा लहजा है

क्या ख़बरें हैं क्या क़िस्सा है
अब हाथ हिलाएँ मुस्काएँ

सरगोशी हो या चिल्लाईं
अब सर टकराएँ फूलों की सौग़ात लिए

क्या बात बने
दो सदियाँ कैसे बात करें

इंकार सरासर ना-मुम्किन
इक़रार मुकम्मल बे-मा'नी

अब सात-समुंदर शीशे की दीवार से लग कर
झाँक रहा है

घूर रहा है
झुंझलाहट का घटता बढ़ता पागल-पन