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हाए शिद्दत की कमी | शाही शायरी
hae shiddat ki kami

नज़्म

हाए शिद्दत की कमी

अमीक़ हनफ़ी

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मैं जहाँ पैदा हुआ
परवरिश पाया बढ़ा

और जिस जा आज हूँ
उन सभी जगहों का मौसम

मो'तदिल फ़य्याज़ मुख़्लिस मेहरबाँ
जो तपाने या जमाने के अमल से ना-बलद

ख़ाक के ज़र्रों को भोभल बनते मैं ने
आज तक देखा नहीं

और दरियाओं को राह-ए-बर्फ़ में तब्दील होते भी न देखा
तजरबे मिट्टी के लोंदे गोल चिकने और सपाट

नोक है उन में न धार
और न चुभने की सकत

एक आदत इक रिवायत इक रिवाज
क्या मिरे बाहर का मौसम और क्या मेरा मिज़ाज!