चलो
फिर ख़ुद को ढूँडें
ज़ात के नज़ारे की कोशिश करें
देखो
वो भूरा दश्त-ए-इम्काँ
दूर तक फैला हुआ है
सामने हद्द-ए-नज़र तक
गहरी तारीकी की नागन रक़्स-फ़रमा है
बिखरती रेत पर
कोई भी नक़्श-ए-पा नहीं है
नज़्म
गुम-शुदा
अबरार आज़मी
नज़्म
अबरार आज़मी
चलो
फिर ख़ुद को ढूँडें
ज़ात के नज़ारे की कोशिश करें
देखो
वो भूरा दश्त-ए-इम्काँ
दूर तक फैला हुआ है
सामने हद्द-ए-नज़र तक
गहरी तारीकी की नागन रक़्स-फ़रमा है
बिखरती रेत पर
कोई भी नक़्श-ए-पा नहीं है