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गुम-शुदा लम्हे की तलाश | शाही शायरी
gum-shuda lamhe ki talash

नज़्म

गुम-शुदा लम्हे की तलाश

सरवत ज़ेहरा

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किसी आँख के पपोटों के
खुलने और बंद होने के दरमियान

एक रौशनी का आसमान
अपनी छब दिखा के कहीं गुम हो गया है

और मैं कभी
अपनी आँख की पुतलियों के

जागते हुए अंधेरों में
उसे ढूँडती हूँ

और कभी खुली आँख के क़लम से
लिखे गए अक्स में

उसे तराशती हूँ
मगर

वो रौशनी का आसमान
मुझे मिल नहीं रहा है