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ग़ारत तमाशा हो गया | शाही शायरी
ghaarat tamasha ho gaya

नज़्म

ग़ारत तमाशा हो गया

जाफ़र साहनी

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मुझ को वो कुत्ता
सबा क़दमों उछलता

मख़मली सब्ज़े पे तोहफ़ा
हुस्न-ए-मुत्लक़ का बना दिल-कश लगा था

लम्बे बालों
रुई के गालों को पहने

जिस्म इस का गेंद सा लगने लगा था
इक गुलाबी नर्म उँगली

नर्म पट्टा
हल्की सी ज़ंजीर

वो कुत्ता बहुत अच्छा लगा था
हाँ मगर वो गेंद सा

कुत्ता उछलता भी
अचानक एक पत्थर के सिरे पर

सूँघता कुछ रुक गया
और आम कुत्तों की तरह

इक टाँग अपनी जब उठा कर
हस्ब-ए-ख़स्लत कर गया

ग़ारत तमाशा हो गया