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फ्लोदनिडर्दन | शाही शायरी
flodniDedan

नज़्म

फ्लोदनिडर्दन

इलियास इश्क़ी

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तिरी ख़ामोश-मोहब्बत को न समझा कोई
बे-ज़बानी तिरी इज़हार बनी थी जिस का

तिरे जज़्बात तिरे एहसासात
कभी शादाबी से तेरी कभी कुम्लाहट से

आश्कारा थे मगर कोई न समझा तिरी बात
ज़िंदगी भी तिरी पोशीदा थी इंसानों से

फिर भी कुछ लोगों ने दौलत के लिए नाल समझ कर तुझ से
ड्राइंग-रूम अपने सजा रक्खे हैं

मर्तबानों में तवज्जोह से लगाया है तुझे
कितनी यक-तरफ़ा रही है तिरी चाह

लेकिन इस दौर में कुछ लोग ज़बाँ-दाँ हैं तिरे
मिल गया है तिरी ख़ामोश मोहब्बत को जवाब

देर ही से सही इंसान का दिल जागा है
आज भी रंज में राहत में है तू उस की शरीक

उस का ग़म रखता है अफ़्सुर्दा तुझे
और ख़ुशियाँ तुझे सरसब्ज़ बना देती हैं

लेकिन अब भी बहुत ऐसे हैं नहीं जिन को ख़बर
उन पे जो बीतती है तुझ पे गुज़र जाती है

रास बे-मेहरी-ए-इंसाँ तुझे कब आती है
रंज की आँच से तू सूख के रह जाती है