EN اردو
एक वाक़िआ | शाही शायरी
ek waqia

नज़्म

एक वाक़िआ

साहिर लुधियानवी

;

अँध्यारी रात के आँगन में ये सुब्ह के क़दमों की आहट
ये भीगी भीगी सर्द हवा ये हल्की हल्की धुंदलाहट

गाड़ी में हूँ तन्हा महव-ए-सफ़र और नींद नहीं है आँखों में
भूले-बिसरे अरमानों के ख़्वाबों की ज़मीं है आँखों में

अगले दिन हाथ हिलाते हैं पिछली पीतें याद आती हैं
गुम-गश्ता ख़ुशियाँ आँखों में आँसू बन कर लहराती हैं

सीने के वीराँ गोशों में इक टीस सी करवट लेती है
नाकाम उमंगें रोती हैं उम्मीद सहारे देती है

वो राहें ज़ेहन में घूमती हैं जिन राहों से आज आया हूँ
कितनी उम्मीद से पहुँचा था कितनी मायूसी लाया हूँ