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एक मुख़्तलिफ़ कहानी | शाही शायरी
ek muKHtalif kahani

नज़्म

एक मुख़्तलिफ़ कहानी

इफ़्तिख़ार नसीम

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जूली कितनी भोली थी
जब उस ने इज़हार किया था

अपने अंदर की ख़्वाहिश का
इस छोटे से शहर के

सारे लोगों ने उस पर थूका था
चर्च के फ़ादर ने

उस को
इंजील-ए-मुक़द्दस के वर्क़ों से पढ़ के सुनाया

औरत नस्ल-ए-इंसानी की ख़ातिर दुनिया में आई है
उस के अंदर की ख़्वाहिश तो एक गुनह है

ये तो काफ़ी साल पुराना क़िस्सा है
अब जूली तो बहुत बड़े इक शहर के अंदर

आली-शान मकान में रहती है
कभी-कभार उसे जब

इस छोटे क़स्बे की याद सताती है तो
किसी भी क़ब्रिस्तान में जा कर

अन-जानी क़ब्रों पे
फूल चढ़ा कर

घर को वापस आ जाती है