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एक मंज़र | शाही शायरी
ek manzar

नज़्म

एक मंज़र

साहिर लुधियानवी

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उफ़ुक़ के दरीचे से किरनों ने झाँका
फ़ज़ा तन गई रास्ते मुस्कुराए

सिमटने लगी नर्म कोहरे की चादर
जवाँ शाख़-सारों ने घुँघट उठाए

परिंदों की आवाज़ से खेत चौंके
पुर-असरार लय में रहट गुनगुनाए

हसीं शबनम आलूद पगडंडियों से
लिपटने लगे सब्ज़ पेड़ों के साए

वो दूर एक टीले पे आँचल सा झलका
तसव्वुर में लाखों दिए झिलमिलाए