EN اردو
एक आँच की कमी | शाही शायरी
ek aanch ki kami

नज़्म

एक आँच की कमी

असग़र नदीम सय्यद

;

सूरज आसमान से गिरा
और लेमूँ बन गया

चाँद आसमान से गिरा
और कपास का फूल बन गया

मैं तारीख़ के मीनार से गिरा
और वाक़िआ क्यूँ न बन सका

पानी दरियाओं से निकला
और जंगल बन गया

लफ़्ज़ किताब से निकला
और आलिम बन गया

मैं उस की निय्यत के अँधेरे से निकला
और आज़ादी क्यूँ न बन सका

हवा बादबान से गिरी
और मल्लाह का गीत बन गई

बोसा होंटों से गिरा
और मोहब्बत का परिंदा बन गया

दिन उक़ाब की चोंच से गिरा
और सूरज-मुखी का बाग़ क्यूँ न बन सका

तीर कमान से निकला
और बादशाह बन गया

शहज़ादा महल से निकला
और जोगी बन गया

ख़याल अपने मदार से निकला
और नज़्म क्यूँ न बन सका

ख़्वाहिश दिल से गिरी
और काला गुलाब बन गई

नुक्ता ध्यान से गिरा
और सूफ़ी बन गया

मैं ज़मीन पर गिरा
और बारिश का क़तरा क्यूँ न बन सका!