जज़्बों की लड़ाई में
जब कभी एहसास पर वार हो जाए
सब बे-कार हो जाए
दुआओं का एक मुक़द्दस सिलसिला
आसमानों से अपना नाता तोड़ डाले
वक़्त हम को वहशतों के हवाले कर के
चुप-चाप रुख़्सत हो जाए
और मुक़द्दर भी पनाह देने से मुंकिर हो जाए
तो ये सब
फ़क़त इस बात का इशारा है...
कि ख़ुद से बे-ख़बर हो कर
जो लम्हा आलूदा कर के हम ने फ़लक की तरफ़ उछाला था
आज वही लम्हा
आसमानों से फ़तवा ले कर
हम पर हुक्मरानी करने आया है
नज़्म
धुँदला लम्हा
मुनीर अहमद फ़िरदौस